अल्फ़ाज़

सोचता हूँ तुम पर अब मुकदमा कर दू यारा,
इसी बहाने तारीखों पर मुलाक़ात तो होगी....


मेरी शायरी को इतने गौर से मत पढ़िये जनाब...
कहीं कुछ समझ आ गया तो बेमतलब उलझ जाओगे....!!


जज्बात पे काबू वो भी मोहबत में,
कमाल है तूफान से कहते हो 
खामोशी से गुजर जाए


जरा शिद्दत से चाहो तभी आरजु पुरी होगी ,
हम वो नहीँ जो तुम्हेँ खैरात मेँ मिल जाए ।


दिल का क्या है तेरी यादोँ के सहारे जी लेगा ,
हैरान तो आंखेँ हैँ
जो तड़फती है तेरे दीदार को ।


इतनी चाहत है उस से कि इन्तेहां हो गई ।
मगर वो मुहब्बत करके फिर बेवफ़ा हो गई ।
हम तो चाहते थे टूट कर इस कदर उसे ,
बस यही एक खता तो यारो हमसे हो गई ।


समझ नही आती यारब ...
वफ़ा करे तो किस से करेँ ।
मिट्टी से बने ये लोग
कागज़ के टुकड़ोँ पर बिक जाते हैँ ।



हमारे बाद नहीँ आएगा तुम्हेँ चाहत का ऐसा मजा ,
तुम लोगोँ से कहते फिरोगे मुझे चाहो उसकी तरह ।
अल्फ़ाज़ अल्फ़ाज़ Reviewed by Dard ki aawaj on July 05, 2018 Rating: 5

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